नालंदा बिहार में स्थित एक प्राचीन,विश्व का का सबसे बड़ा और पहला विश्वविद्यालय है जो की भारत के अभिज्ञ धरोहरों में से एक है। नालंदा केवल भारत का ही नहीं परन्तु पुरे विश्व के ज्ञान का केंद्र के रूप में जाना जाता है। इस लेख में हम नालंदा के इतिहास के साथ साथ इसके महत्व और वर्त्तमान परिस्थितियों के बारे में भी विस्तृत चर्चा करेंगे।
नालंदा का इतिहास
नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना 5वीं शताब्दी में गुप्त वंश के शासक कुमारगुप्त प्रथम ने की थी। यह विश्व का पहला आवासीय विश्वविद्यालय था जहां शिक्षकों और छात्रों के लिए आवासीय सुविधाएं उपलब्ध थीं। नालंदा में विभिन्न विषयों पर शिक्षा दी जाती थी जिसमें बौद्ध धर्म, तर्कशास्त्र, व्याकरण, दर्शन, गणित, चिकित्सा, और खगोल विज्ञान शामिल थे।नालंदा विश्वविद्यालय का विशाल परिसर और उत्कृष्ट शिक्षण प्रणाली उसे विश्व के सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालयों में से एक बनाते थे। यहां पर आने वाले विद्वानों में ह्वेनसांग और इत्सिंग जैसे चीनी यात्री और विद्वान भी शामिल थे जिन्होंने नालंदा के बारे में विस्तृत वर्णन किया है। नालंदा का प्रमुख आकर्षण उसकी विशाल पुस्तकालय था, जिसे ‘धर्मगंज’ कहा जाता था। इसमें तीन प्रमुख भवन थे – रत्नसागर, रत्नोदधि और रत्नरंजक, जिनमें लाखों पांडुलिपियाँ संग्रहित थीं।
नालंदा का पतन
बख्तियार खिलजी (इख़्तियार अल -दिन मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी) १२वी सताब्दी का एक तुर्किक जेनेरल था जो की खुरीद साम्राज्य से तालुक रखता था। बख्तियार खिलजी 1193 से 1206 तक भारत में लूटपाट और जबरदस्ती इस्लाम के विस्तार का अभियान चलाया। इसने अपने अभियान को विस्तृत करते हुए बिहार और बंगाल की और अपना अभियान चलाया। नालंदा अपने समय में विस्वा प्रसिद्द शैक्षणिक संसथान था जहाँ देश विदेश से विद्यार्थी आकर अध्ययन करते थे और कहीं न कहीं नालंदा के इस विस्वा प्रसिद्धि और ज्ञान का अपार संग्रह ही इसके विध्वंस का कारन बन गया। बख्तियार खिलजी भारत में हिन्दू और बुद्धिस्ट शैक्षणिक और धर्म स्थलों को नस्ट करने के उदेस्य से ही आया था क्यूंकि उसको पता था की जब तक हिंदू और बुद्धिस्ट धार्मिक और शैक्षणिक स्थल ध्वस्त नहीं होते तब तक जबरदस्ती इस्लाम का विस्तार होना असंभव था। बख्तियार खिलजी ने नालंदा को इतनी भीषण तरीके से जलाया था की नालंदा की 90,00000 किताबें ३ महीने तक जलती रहीं।
वर्तमानं परिस्थिति
21वीं शताब्दी में नालंदा विश्वविद्यालय के पुनरुद्धार के प्रयास किए गए। 2010 में भारतीय संसद ने ‘नालंदा विश्वविद्यालय अधिनियम’ पारित किया जिसके तहत नालंदा विश्वविद्यालय को पुनर्जीवित करने का कार्य आरंभ हुआ। वर्तमान नालंदा विश्वविद्यालय एक अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय के रूप में स्थापित किया गया है जिसका उद्देश्य प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय की शिक्षण परंपराओं को पुनः स्थापित करना है। नालंदा विश्वविद्यालय का नया परिसर राजगीर में स्थित है और इसे आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित किया गया है। विश्वविद्यालय में विभिन्न विषयों पर अध्ययन और शोध कार्य किए जा रहे हैं जिसमें बौद्ध धर्म, इतिहास, पर्यावरण विज्ञान, और अंतरराष्ट्रीय संबंध शामिल हैं। वर्तमान नालंदा विश्वविद्यालय का उद्देश्य प्राचीन नालंदा की शिक्षण परंपराओं को पुनर्जीवित करना और इसे एक वैश्विक शिक्षा केंद्र के रूप में स्थापित करना है। इसके साथ ही, नालंदा के प्राचीन अवशेषों का संरक्षण और उनकी ऐतिहासिक धरोहर के रूप में विकास भी जारी है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा नालंदा के खंडहरों की खुदाई और संरक्षण का कार्य किया जा रहा है। यूनेस्को ने 2016 में नालंदा महाविहार (नालंदा विश्वविद्यालय के प्राचीन अवशेष) को विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी है। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 जून 2024 को नालंदा विश्वविद्यालय की नयी और आधुनिक इमारत का उद्घाटन किया। नालंदा का ये नया रूप हमारे भारत को नै ऊचाइंयों पे ले जायेगा और भारत को विश्वगुरु बनने की राह में अग्रसर करेगा।
निष्कर्ष
नालंदा विश्वविद्यालय भारतीय शिक्षा प्रणाली की शान और गौरव का प्रतीक है। इसका इतिहास, महत्व और वर्तमान परिदृश्य हमें यह बताता है कि प्राचीन भारत में शिक्षा का कितना उच्च स्तर था और कैसे नालंदा ने विश्व के विभिन्न हिस्सों से छात्रों और विद्वानों को आकर्षित किया। वर्तमान में नालंदा विश्वविद्यालय के पुनरुद्धार के प्रयास न केवल भारतीय शिक्षा प्रणाली को मजबूत कर रहे हैं बल्कि यह भी सुनिश्चित कर रहे हैं कि नालंदा का गौरवमय इतिहास पुनः जीवित हो सके। नालंदा की यात्रा हर भारतीय और विश्व के हर व्यक्ति के लिए प्रेरणादायक है जो ज्ञान की खोज में है।